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ये नः॑ स॒पत्ना॒ऽअप॒ ते भ॑वन्त्विन्द्रा॒ग्निभ्या॒मव॑ बाधामहे॒ तान्। वस॑वो रु॒द्राऽआ॑दि॒त्याऽउ॑परि॒स्पृशं॑ मो॒ग्रं चेत्ता॑रमधिरा॒जम॑क्रन् ॥४६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। नः॒। स॒पत्ना॒ इति॑ स॒ऽपत्नाः॑। अप॑। ते। भ॒व॒न्तु॒। इ॒न्द्रा॒ग्निभ्या॒मिती॑न्द्रा॒ग्निऽभ्या॑म्। अव॑। बा॒धा॒म॒हे॒। तान् ॥ वस॑वः। रु॒द्राः। आ॒दि॒त्याः। उ॒प॒रिस्पृश॒मित्युपरि॒ऽस्पृश॑म्। मा॒। उ॒ग्रम्। चेत्तार॑म्। अ॒धि॒रा॒जमित्य॑धिऽरा॒जम्। अ॒क्र॒न् ॥४६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:34» मन्त्र:46


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजधर्म विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (ये) जो (नः) हमारे (सपत्नाः) शत्रु लोग हों (ते) वे (अप, भवन्तु) दूर हों अर्थात् पराजय को प्राप्त हों, जैसे (तान्) उन शत्रुओं को हम (इन्द्राग्निभ्याम्) वायु और विद्युत् के शस्त्रों से (अव, बाधामहे) पीड़ित करें और जैसे (वसवः) पृथिवी आदि वसु (रुद्राः) दश प्राण, ग्यारहवाँ आत्मा और (आदित्याः) बारह महीने (उपरिस्पृशम्) उच्च स्थान पर बैठने (उग्रम्) तेजस्वभाव और (चेत्तारम्) सत्यासत्य को यथावत् जाननेवाले (मा) मुझको (अधिराजम्) अधिपति स्वामी समर्थ (अक्रन्) करें, वैसे उन शत्रुओं का तुम लोग निवारण और मेरा सत्कार करो ॥४६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जिसके अधिकार में पृथिवी आदि पदार्थ हों, वही सबके ऊपर राजा होवे। राजा होवे वह शस्त्र-अस्त्रों से शत्रुओं का निवारण कर निष्कण्टक राज्य करे ॥४६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजधर्मविषयमाह ॥

अन्वय:

(ये) (नः) अस्माकम् (सपत्नाः) शत्रवः (अप) दूरीकरणे (ते) (भवन्तु) (इन्द्राग्निभ्याम्) वायुविद्युदस्त्राभ्याम् (अव) (बाधामहे) (तान्) (वसवः) पृथिव्यादयः (रुद्राः) दश प्राणा एकादश आत्मा च (आदित्याः) संवत्सरस्य मासाः (उपरिस्पृशम्) य उपरि स्पृशति तम् (मा) माम् (उग्रम्) तीव्रस्वभावम् (चेत्तारम्) सत्याऽसत्ययोर्यथावद्विज्ञातारम् (अधिराजम्) सर्वेषामुपरि राजानम् (अक्रन्) कुर्वन्तु ॥४६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! ये नः सपत्नाः स्युस्तेऽपभवन्तु यथा तान् वयमिन्द्राग्निभ्यामव बाधामहे, यथा च वसवो रुद्रा आदित्या उपरिस्पृशमुग्रं चेत्तारं मा मामधिराजमक्रन्, तथा तान् यूयं निवारयत मां च सत्कुरुत ॥४६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यस्याऽधिकारे पृथिव्यादयः पदार्थाः स्युस्स एव सर्वेषामुपरि राजा स्यात्। यो राजा भवेत् स शस्त्रास्त्रैः शत्रून् निवार्य निष्कण्टकं राज्यं कुर्य्यात् ॥४६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. पृथ्वी व त्यावरील पदार्थांवर ज्याचा अधिकार असेल तोच सर्वांचा राजा होऊ शकतो. जो राजा बनू शकतो त्याने अस्र शस्रांनी शत्रूंचे निवारण करून राज्य निष्कंटक बनवावे.